बिहार चुनाव 2025: ओवैसी की ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ से बदलेगा समीकरण? AIMIM ने खेला बड़ा दांव
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल को साधने की कोशिश तेज़ की, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों को जोड़ने की रणनीति।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल को साधने की कोशिश तेज़ की, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों को जोड़ने की रणनीति।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और इसी बीच AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ‘सीमांचल न्याय यात्रा’ की शुरुआत कर दी है। यह यात्रा 24 सितंबर से शुरू होकर सीमांचल के जिलों—कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया—में केंद्रित होगी।
ओवैसी ने कहा कि सीमांचल के लोग लगातार उपेक्षा का शिकार हुए हैं। शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे की कमी यहाँ के लोगों की सबसे बड़ी समस्या है। इसी मुद्दे को उठाने के लिए वे जनता के बीच पहुँच रहे हैं।
ओवैसी का दावा है कि AIMIM सिर्फ़ सत्ता हासिल करने नहीं, बल्कि “सीमांचल के हक और न्याय” की लड़ाई लड़ने आई है।
2020 के बिहार चुनाव में AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र से 5 सीटें जीती थीं।
बाद में पार्टी को झटका लगा जब उसके चार विधायक RJD में शामिल हो गए।
अब 2025 में ओवैसी फिर से सीमांचल में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं।
सीमांचल की लगभग 20–25 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या निर्णायक भूमिका निभाती है।
महागठबंधन के लिए चुनौती – RJD-Congress को मुस्लिम वोट AIMIM की मौजूदगी से बँटने का डर।
NDA को अप्रत्यक्ष फायदा – अगर मुस्लिम वोट AIMIM और RJD में बँटते हैं, तो NDA को इसका सीधा लाभ मिल सकता है।
ओवैसी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा – सीमांचल न्याय यात्रा ओवैसी की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वे उत्तर भारत की राजनीति में AIMIM का विस्तार करना चाहते हैं।
स्थानीय मुद्दों पर फोकस – बेरोजगारी, बाढ़, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं पर केंद्रित होकर AIMIM जनता को सीधे साधना चाहती है।
ओवैसी की सीमांचल न्याय यात्रा बिहार की राजनीति में नया रंग भर सकती है। यह यात्रा केवल चुनावी रैली नहीं, बल्कि मुस्लिम-पिछड़े वर्ग की आवाज़ को मजबूत करने का प्रयास है। आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि AIMIM की रणनीति महागठबंधन को नुकसान पहुँचाती है या NDA को अप्रत्यक्ष बढ़त दिलाती है।