
महाराष्ट्र सरकार और हिंदू संगठनों ने ‘खालिद का शिवाजी’ फिल्म पर इतिहास-भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सीबीएफसी प्रमाणपत्र की पुनः समीक्षा की मांग की।
मराठी फिल्म ‘Khalid Ka Shivaji’ को लेकर महाराष्ट्र में एक बड़ा राजनीतिक और सांस्कृतिक विवाद छिड़ गया है। हिंदू महासंघ और अन्य संगठनों ने यह आरोप लगाया है कि फिल्म में छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास सभार और तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया है। विशेषकर यह कथित दावा कि महाराज की सेना का 35% हिस्सा मुस्लिम था, और रायगड में मस्जिद बनवाई गई — इन्हें इतिहास विकृति बताया जा रहा है।
गृहमंत्री अशिष शेलार ने कहा है कि फिल्म के Cannes चयन पर सवाल उठते हैं, और सरकार ने केंद्र से सीबीएफसी सर्टिफिकेट वापस लेने की मांग की है।
आधिकारिक नोटिस जारी:
फिल्म निर्माताओं को I&B मंत्रालय की ओर से नोटिस भेजा गया है, जिसमें उनको फिल्म की कथानक/इतिहास को प्रमाणित करने को कहा गया है।

हिंदू महासंघ ने CBFC को पत्र भेजकर बंदी की मांग की है। यदि फिल्म नहीं रोकी गई, तो सिनेमाघरों में विरोध प्रदर्शन की चेतावनी भी दी गई है।
विवाद बढ़ने पर फिल्म के निर्माताओं ने संवादों और कथानक को संशोधित करने की संभावना जताई है, साथ ही एक आधिकारिक स्पष्टीकरण भी जारी किया गया है।
मुख्यमंत्री फडणवीस के कार्यक्रम में विरोध प्रदर्शन ने साफ किया कि यह विषय किस हद तक संवेदनशील है।
शिवाजी महाराज का योगदान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पहचान है। उन्हें हिंदुत्व प्रतीक माना जाना और अब इस फिल्म में उन्हें सेक्युलर रूप में दिखाना — यह दोनों दृष्टिकोणों में राजनीतिक और सांस्कृतिक टकराव का हिस्सा है।
इस विवाद ने महाराष्ट्र की राजनीति और सांस्कृतिक संवेग को नया मोड़ दिया है। क्या फिल्म का सेक्युलर दृष्टिकोण विवेचनात्मक सोच को बढ़ावा देगा, या इतिहास की पौराणिक पहचान को धक्का देगा?
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