
अस्थमा क्या है
अस्थमा या दमा, फेफड़ों के वायु मार्ग या श्वसन नलिकाओं में होने वाली एक पुरानी बीमारी है जो श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है। यह श्वास से जुडी बीमारी है जो श्वसन नलिकाओं में होने वाले बदलाव के कारण उत्पन्न होती है। इस बीमारी में श्वसन नलिकाओं के सिकुड़ जाने के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है, सांस फूलने की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिससे फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती जिसकी वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस बीमारी की गंभीरता या आवृत्ति अधिक बढ़ जाने के कारण मृत्यु भी हो सकती है। यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है किन्तु बच्चों और बुजुर्गों में इस बीमारी के होने की संभावना अधिक होती है।
अस्थमा के दौरान सांस लेते समय गले या सीने से एक सीटी जैसी आवाज आती है जो की श्वसन नली में दबाव या सूजन की वजस से एवं हवा के मुश्किल से श्वसन नली में प्रवेश करने की वजह से उत्पन्न होती है।
W.H.O.(वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 तक पूरे विश्व में लगभग 33,90,00,000 से ज्यादा मरीज थे जो अस्थमा से पीड़ित थे और लगभग 417,918 लोगो की अस्थमा की वजह से मृत्यु हुई थी। अस्थमा का इलाज करने वाले विशेषज्ञ को पल्मोनोलॉजिस्ट कहते हैं। इस बीमारी की प्राथमिक जांच के लिए लक्षणों के आधार पर लगभग ४ प्रकार के टेस्ट किये जाते हैं।
1. स्पाइरोमेट्री टेस्ट – जिस प्रकार ECG ह्रदय के कार्यान्वयन की विषमताओं की जांच के लिए किया जाता है उसी प्रकार फेफड़ों के कार्यान्वयन की विषमताओं की जाँच के लिए स्पाइरोमेट्री टेस्ट किया जाता है। जिसमे व्यक्ति कितनी तेजी से सांस ले सकता है कितनी तेजी से सांस छोड़ सकता है इस आधार पर अस्थमा की गंभीरता की जांच की जाती है। स्पाइरोमेट्री टेस्ट के लिए टेस्ट सेंटर्स की उपलब्धता अच्छी नहीं है। जिसकी कीमत 200 से 2000 के बीच हो सकती है।
2. पीक फ्लो – इस टेस्ट में मरीज बाहर की तरफ सांस छोड़ता है जिससे फेफड़े की ताकत या क्षमता का पता लगाया जाता है। सामान्य स्थिति में यदि सांस छोड़ने के बाद मीटर 400 से 500 के बीच के स्तर पर जाता है तो आपके फेफड़े स्वस्थ हैं। इस यन्त्र की कीमत 300 से 400 के बीच हो सकती है।
3. लंग्स टेस्ट – इस टेस्ट में फेफड़ों के साथ साथ पूरे श्वसन तंत्र की जांच की जाती है। जिसकी कीमत 600 से 800 के बीच हो सकती है।
4. कुछ एलर्जिक टेस्ट भी किये जाते हैं।
अस्थमा के प्रकार
अस्थमा को उसके लक्षण एवं इसे प्रभावित करने वाले कारकों के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है।
1. एक्सट्रिन्सिक अस्थमा या एटॉपिक – इसके अंतर्गत अस्थमा के ऐसे पेशेंट्स आते हैं जिनका अस्थमा का या तो कोई पारिवारिक इतिहास होता है या फिर जिन्हे बाहरी वातावरण में होने वाले बदलावों या कारकों से एलर्जी हो।
2. इन्ट्रिंसिक अस्थमा या नॉन-एटॉपिक – इसके अंतर्गत आने वाले पेशेंट्स की संख्या बहुत ही कम होती है या फिर ज्यादातर बुजुर्गों में इस प्रकार के अस्थमा की समस्या पायी जाती है। इसमें न तो अस्थमा का कोई पारिवारिक इतिहास होता है और न ही पेशेंट्स को किसी बाहरी कारकों से एलर्जी होती है। अर्थात ऐसे पेशेंट्स को अस्थमा होने का कारण कोई बाहरी कारक नहीं होता बल्कि पेशेंट्स के अंदर ही किसी चीज़ के रिएक्शन की वजह से यह समस्या उत्पन्न हो जाती है।
जैसे – दवाइयों(Aspirin) का प्रयोग, व्यायाम, तनाव, या सर्दी-जुकाम।
अस्थमा का कारण
अस्थमा होने के कई कारण हो सकते हैं –
1. पारिवारिक – यदि परिवार में या माता पिता को अस्थमा की समस्या है तो आने वाले संतान में भी अस्थमा होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
2. एलर्जी – एलर्जी अस्थमा का एक प्रमुख एवं बहुत सामान्य कारण है। बाहरी वातावरण के ऐसे कारक जिनके शरीर में जाने से शरीर प्रतिक्रिया करता है क्योंकि वे कारक शरीर के लिए अनुकूल नहीं होते अतः उन कारकों के शरीर में श्वास, खाद्य पदार्थ, या अन्य माध्यमों द्वारा शरीर में प्रवेश करने से शरीर एक प्रतिक्रिया करता है जिसकी वजह से अस्थमा की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति इस बात का अनुभव कर सकता है कि जब जब कोई विशेष परिस्थिति उत्पन्न होती है तब तब उन्हें अस्थमा की वजह से साँस लेने में तकलीफ होने लगती है। इन कारकों में शामिल हो सकते है – घर में एवं बाहर निकलने वाले पुराने धूल मिटटी के कण, किसी प्रकार का धुआं, परफ्यूम, डियो, प्रदुषण, गंध, फूल, पालतू जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, मछली का सेवन, गेहूं, सोया, दूध, मूंगफली, एवं अंडे।
एलर्जी की वजह से होने वाले अस्थमा के अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं जिनकी वजह से अस्थमा की समस्या उत्पन्न होती है जैसे – अधिक सर्दी-जुकाम, एसिड रिफ्लेक्शन के कारण, खांसी, दवाइयों का सेवन, सल्फाइड युक्त पदार्थों का सेवन, तनाव, मौसम में परिवर्तन, धूम्रपान, पर्याप्त नींद में कमी एवं तेज़ हंसना।
इस बीमारी से बचाव एवं रोकथाम के लिए इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को अपने स्तर पर इस बात का पता लगाना होगा कि उनमे किन कारकों की वजह से अस्थमा की समस्या उत्पन्न होती है।
अस्थमा के लक्षण
अस्थमा के लक्षण आसानी से पहचाने जा सकते हैं। अस्थमा एक श्वसन से सम्बंधित बीमारी है जिसमे श्वसन नलिकाएं विशेष बाह्य कारक, एलर्जी या आतंरिक कारणों की वजह से सिकुड़ जाती हैं जिससे साँस लेने में समस्या होती है एवं फेफड़ों में पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुँचने की वजह से शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इस दौरान कुछ लक्षण उत्पन्न होते हैं जिसकी पहचान आसानी से की जा सकती है इनके लक्षणों में शामिल है – सांस लेने में समस्या, सांस लेते समय गले या सीने से एक सीटी जैसी आवाज़ आती है, सीने में जकड़न, बलगम वाली या सुखी खांसी होना, ठन्डे वातावरण में सांस लेने में तकलीफ, और यह सांस लेने की तकलीफ सुबह या शाम के समय बढ़ जाती है।
यह भी ध्यान रखें की सांस लेने में होने वाली समस्या हर बार अस्थमा नहीं होती। सांस फूलने या साँस लेने में तकलीफ के और भी कारण हो सकते हैं जैसे अधिक कसरत, लम्बी दौड़, अधिक शारीरिक परिश्रम इत्यादि इन सभी कार्यों के दौरान भी सांस फूलती है कित्नु आपके श्वसन नलिकाओं में यदि कोई समस्या नहीं है तो आप तेज और भरपूर सांस आसानी से ले पाएंगे।
उपचार
अस्थमा उन बीमारियों में से एक है जो एक स्तर के बाद बहुत खतरनाक और जानलेवा हो सकता है। चेतावनी या ट्रिगर की पहचान कर इसका उपचार किया जा सकता है। आवश्यकता है उन चेतावनियों और ट्रिगर्स को पहचानने की। ट्रिगर्स वो कारक हैं जिसकी वजह से अस्थमा की समस्या या अस्थमा का अटैक आने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए आवश्यकता है इस बीमारी के शुरुआती चरणों में ही इसका उपचार करने की और आवश्यक परहेज करने की। इसके ठीक होने की कोई निश्चित समय सीमा नहीं है निर्भर करता है की आप इस बिमरै के प्रति कितने गंभीर हैं। कभी कभी व्यक्ति एक महीने में ठीक हो जाता है और कभी कभी ठीक होने में जिंदगी भर का समय लग जाता है।
खाद्य सेवन – अपने आहार में विटामिन A, विटामिन C और विटामिन E युक्त पदार्थ, शामिल करें, जिससे आप में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। ओमेगा फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें ये आपके फेफड़ों को मजबूत करेगा और श्वसन सम्बन्धी समस्याओं में आराम पहुंचाएगा। फोलिक एसिड या B9 युक्त पदार्थों का सेवन करें जो आपको तनाव को दूर करने में सहायक होता है। ध्यान रखें की इनका सेवन आपको सिर्फ फल, सब्जी और ड्राई फ्रूट्स के माध्यम से ही करना है यदि इसके लिए किसी दवा की आवश्यकता है तो पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें। सुबह खाली पेट एवं दिन में पीने के लिए हमेशा गुनगुने पानी का सेवन करें। यदि आप दूध का सेवन करते हैं तो दूध में हल्दी डालकर गुनगुने दूध का ही सेवन करें।
पेट भर कर खाना खाने से बचें एवं रात में सोने से ३ घंटे पहले भोजन कर लें। आहार में बकरी का दूध, प्याज, लहसुन, अदरक, तुलसी, हल्दी को शामिल करें। पीपल के पेड़ की ऊपर वाली छाल हटा कर अंदर की गीली छाल निकाल कर उसे पूरी तरह से सुखा लें फिर उसका चूर्ण बना कर रख लें और पूर्णिमा की रात खासकर शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसमे लगभग 5 ग्राम पीपल के छाल का चूर्ण मिला कर शाम को उसका सेवन करें लेकिन ध्यान रखें कि जिस रात आप इसका सेवन करेंगे उस रात आपको सोना नहीं है। प्रतिदिन लगभग ५० ग्राम तक कच्चा नारियल चबा-चबा कर खाएं।
परहेज – चावल , मैदा, जंक फ़ूड/फ़ास्ट फ़ूड, मीठा(चीनी), दही, ठंडी चीज़े एवं खट्टी चीज़ों से परहेज करें। कब्ज से बचें।
काढ़ा – 1. 4 या 5 लौंग , और दाल चीनी की 2 या 3 छोटी छालें 1 गिलास(300ml) पानी में डाल कर कम आंच पर पकाएं जब पानी आधा हो जाए तब उसे छान लें और 1 चम्मच शहद मिला कर गुनगुना रात में सोने से पहले सेवन कर लें।
2. मेथी और अदरक का काढ़ा बना लें फिर छान कर उसमे में शहद मिला कर सुबह और शाम सेवन करें।
चूर्ण – १. सितोप्लादी चूर्ण 50 ग्राम, अभ्रक भस्म 10 ग्राम, श्रंग भस्म 10 ग्राम, मल्ल सिंदूर 4 ग्राम इन सब को मिला कर चूर्ण बना कर मिला लें फर बराबर मात्रा में इसकी लगभग ६० पुड़िया बना लें और १ पुड़िया में 2 चम्मच शहद में मिला कर दिन में दो बार(एक बार में एक पुड़िया) खाना खाने से पहले इसका सेवन करें।
२. दाल चीनी का पॉवडर बना लें और लगभग आधा चम्मच पाउडर में एक चम्मच शहद या आवश्यकतानुसार गुड़ अच्छे से मिला ले और आराम-आराम से इसका सेवन करें। कोशिश करें कि एकदम से निगलने की जगह कुछ देर इसे अपने गले में ही रखें।
३. हल्दी को गाय के घी में भूंज लें फिर आधे चम्मच में एक चम्मच शहद मिला कर या गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार इसका सेवन करें।
मालिश- तिल के तेल या सरसों के तेल में सेंधा नमक या कपूर मिला कर सीने में मालिश करे और उसके बाद सिकाई करें।
प्राणायाम और योगासन – अनुलोम-विलोम, कपालभाति और कुम्भक रेचक प्राणायाम का अभ्यास करें। योगासन में पवनमुक्तासन, सवासन, और सर्वांगासन का अभ्यास करने से लाभ अवश्य होगा।
अस्थमा या दमा की बीमारी की वजह फेफड़ों में होने वाला इन्फेक्शन श्वसन नली में होने वाला अवरोध, एलर्जी या फेफड़ों में ज्यादा बलगम होता है और ऊपर बताए गए उपचारों में सभी ऐसे ही खाद्य या पेय पदार्थ शामिल हैं जो आपके फेफड़ों के इन्फेक्शन के उपचार और फेफड़ों को मजबूती प्रदान करने के लिए है, बलगम या कफ के इलाज के लिए है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए है, तनाव कम करने के लिए है, या फिर अस्थमा के रोकथाम के लिए है। इनमे से हर खाद्य पदार्थों या पेय पदार्थों का सेवन आप जीवन भर सकते हैं। इनका किसी भी प्रकार से कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं है और आपको निरोगी रखने में भी सहायक हैं। हम आशा करते हैं की हमारे बताए हुए नुस्खे से आपको लाभ अवश्य होगा बस आपको इनका निरंतर एवं दृढ़ता से पालन करना है। यदि आप अन्य किसी विषय पर जानकारी चाहते हैं या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं।