कहा गया है कि "चिंता चिता के समान होती है", यह सिर्फ एक कहावत ही नहीं बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी इसका प्रमाण है।
"चिंता" इसे एक रोग या बीमारी क्यों कहते हैं हर कोई इस बात को नहीं समझ सकता।
जब तक किसी विशेष घटना का अनुभव हम खुद नहीं कर लेते वह जीवन में इस्तेमाल किये जाने वाली एक कहावत रह जाती है जिसे हम आम जीवन में कई बार सुनते हैं और भूल जाते हैं। परन्तु जिस दिन हम उसका व्यक्तिगत अनुभव कर लेते हैं उस दिन से उसके अस्तित्व और उसके परिणाम से भली भांति परिचित हो जाते हैं। इस एहसास को तब तक हमारे के अलावा कोई और नहीं समझ सकता जब तक इसका अनुभव व्यक्ति स्वयं नहीं कर लेता।
हम व्यक्तिगत रूप से घटित घटना को दूसरों के साथ साझा तो कर सकते हैं परन्तु उन्हें उसका वास्तविक अनुभव नहीं करा सकते। किन्तु, एक चीज़ है जो हमारे द्वारा अवश्य प्राप्त किया जा सकता है, वो है हमारा अनुभव और तरीका जिसके प्रयोग से कोई भी व्यक्ति उससे निपटने में सक्षम हो सकता है। अनुभव किसी के लिए प्रेरणा देने का काम कर सकता है और किसी के लिए आशा की एक किरण भी हो सकती है।
यह एक ऐसा अनुभव है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे अलग और सबसे भयावह साबित हो सकता है। यदि आप भी इस बीमारी से ग्रसित हैं तो यह जानकारी आप के लिए है। हम आशा करते हैं कि यहाँ उपलब्ध कराई गयी जानकारी से आपकी मदद अवश्य हो सकेगी।
हम बात करेंगे कि कैसे व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित हो सकता है और वो कौन सा तरीका है जिससे लाभ हो सकता है। चूँकि यह एक मानसिक रोग है और व्यक्तिगत अनुभवों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि मानसिक रोग का इलाज कोई दवा ही नहीं बल्कि दिनचर्या में कुछ आसान बदलाव, सकारात्मक सोंच और इच्छा शक्ति भी है। जिससे शीघ्र और पूरी तरह इलाज संभव है।
विस्तार से पढ़ें :
• चिंता क्या है(What is Anxiety)
• एंग्जायटी के प्रकार(Types of Anxiety)
• एंग्जायटी के लक्षण(Symptoms of Anxiety)
• चिंता का कारण(Reason of Anxiety)
• उपचार(Treatment)
चिंता क्या है(What is Anxiety) :
जब व्यक्ति अकारण ही किसी विषय के बारे में एक श्रंखला बद्ध तरीके से सोंचता है, भूतकाल की ऐसी कोई घटना जो हमेशा परेशान करती है, काल्पनिक कहानी या भविष्य काल में होने वाली सम्भावनाओ, परिस्थितियों या समस्याओं के बारे में सोंचता रहता है, अकारण ही चिंतित या व्यथित होता है तब वह इस अकारण सोंच की वजह से धीरे धीरे इस रोग से ग्रसित हो जाता है। यह एक मानसिक विकृति है जिसकी वजह से एक प्रकार का डर, चिंता, घबराहट, या बेचैनी होती है। जो मन और मस्तिष्क को व्याकुल रखता है। इसे ही चिंता या एंग्जायटी कहते हैं। और जब चिंता की वजह से व्यक्ति असहज या इन सभी लक्षणों का बार बार अनुभव करे तो उसे एंग्जायटी डिसऑर्डर कहते हैं।
एंग्जायटी के प्रकार(Types of Anxiety) :
एंग्जायटी(चिंता) के 5 प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं:-
1. जनरलाइज़्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर (Generalized Anxiety Disorder)
2. पैनिक अटैक (Panic Attack)
3. सोशल एंग्जायटी डिसऑर्डर(Social Anxiety Disorder)
4. पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर(Post Traumatic Stress Disorder)
5. ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर(Obsessive Compulsive Disorder)
हालाँकि इन सभी के कुछ लक्षण कॉमन हैं और ये सभी आपस में कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए ऐसा भी संभव है कि किसी- किसी में इन सभी विकारों के लक्षण नज़र आएं किन्तु इनमे से जिस विकार के लक्षण इस बीमारी में सबसे ज्यादा नजर आते हैं वो है जनरलाइज़्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर और पैनिक अटैक।
Generalized Anxiety Disorder-> जनरलाइज़्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर का साधारण अर्थ होता है छोटी छोटी या नार्मल बातों पे भी चिंता करना जैसे- मैं ऑफिस जाने में लेट हो गया तो या गाड़ी चलाते चलाते कहीं एक्सीडेंट हो गया तो या किसी की मृत्यु की खबर सुन के चिंता करना इत्यादि जिसकी वजह से बहुत ज्यादा घबराहट शुरू हो जाती है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का मन कहीं नहीं लगता, इसकी वजह से व्यक्ति अपने रोज के सामान्य कार्य भी मुश्किल से कर पाता है। यदि आप को भी अक्सर छोटी छोटी बातों में चिंता होती है जिसकी वजह से आपको रोज के सामान्य कार्य करने में मुश्किल हो रही है, आप की एकाग्रता ख़तम हो चुकी है तो समझ लीजिये कि आप को जल्द से जल्द इलाज की जरुरत है। यद्यपि इस बीमारी का इलाज प्राकृतिक तरीके से करना भी संभव है और सफलता भी प्राप्त की जा सकती है। मुझे पूरी उम्मीद है कि उन सभी तरीकों के माध्यम से बिना किसी डॉक्टर या मनोचिकित्सक के पास गए आपको भी लाभ जरूर होगा।
Panic Attack-> पैनिक अटैक, चिंता या घबराहट का सबसे चरम या उच्च स्तर है जिसके बाद पैनिक अटैक आने शुरू हो जाते हैं। जिसमे चिंता या घबराहट के सबसे ज्यादा और सीरियस लक्षण पाए जाते हैं। इस अटैक के दौरान व्यक्ति को अत्यधिक घबराहट होती है और कुछ शारीरिक लक्षण जैसे ह्रदय की धड़कन का तेज़ होना, सीने में दर्द महसूस होना और हार्ट अटैक की आशंका, सांस लेने में तकलीफ होना, मृत्यु का भय, हाथ पैर या शरीर में कम्पन होना, पसीना आना और कभी कभी तो ऐसा लगता है कि वो गिर जाएंगे। व्यक्ति को समझ नहीं आता कि उनके साथ क्या हो रहा है उन्हें लगता है कि वो पागल हो जाएंगे और इन सभी वजहों के कारण व्यक्ति या तो खुद डॉक्टर के पास या इमरजेंसी में पहुँच जाता है या कोई जान पहचान का व्यक्ति या घर वाले उन्हें हॉस्पिटल ले जाते है। हार्ट, ब्लड और दिमाग से जुड़े काफी टेस्ट कराए जाते हैं। टेस्ट के बाद सब नॉर्मल पाया जाता है। पैनिक अटैक 20 से 40 साल के बीच के लोगो में ज्यादातर देखा गया है। इन सभी बातों के अलावा शरीर में होने वाले किसी भी बदलाव जैसे पेट ख़राब होना इत्यादि को ले कर भी पैनिक अटैक्स आ जाते हैं। अटैक का बार बार आना पैनिक डिसऑर्डर कहलाता है।
यह बीमारी किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकती है। इस बीमारी के शिकार मुख्यतः वे लोग होते हैं जो कमज़ोर दिल वाले हैं, जो भावनात्मक रूप से जल्दी टूट जाते हैं , जो बहुत भावुक होते हैं एवं किसी भी छोटी बात को दिल से लगा बैठते हैं। अधिकांश पाया गया है कि यह बीमारी घर के सबसे छोटे संतान को ही होती है। पैनिक अटैक कम से कम 10 मिनट से लेकर 20 मिनट या इससे ज्यादा देर तक भी हो सकता है एवं इसका कोई निर्धारित समय सीमा नहीं है यह कभी भी और कहीं भी हो सकता है।
मनोचिकित्सक एक टेस्ट भी करते हैं जिसमे कुछ सवाल पूछे जाते हैं और उस आधार पे यह मूल्याङ्कन किया जाता है कि आप इस बीमारी के शिकार हो चुके हैं या नहीं। इसमें लगभग ८ सवाल होते हैं जिसका जवाब आप को “हाँ” या “नहीं” में देना होता है। आप भी कर के देखें, यदि सवाल का जवाब "हाँ" है तो उसे नोट कर लें।
सवाल:-
1. क्या आप रोज़ चिंता करते हैं और आप को लगता है कि आप इसे नियंत्रित नहीं कर सकते?
2. क्या आप का दिमाग विचारों की एक श्रंखला बनाता है?
3. क्या आप अक्सर थका हुआ महसूस करते हैं या जल्दी थक जाते हैं?
4. क्या आप की चिंता आप के निर्णयों या कार्यों को प्रभावित करती हैं?
5. क्या आप के हाथ ठन्डे पड़ जाते हैं या उनमे पसीना आने लगता है?
6. क्या आप को ध्यान केंद्रित करने या फोकस करने में तकलीफ होती है?
7. क्या आप के दिल की धड़कन आप को बढ़ी हुई या आप को असहज(uncomfortable) महसूस होती है और अक्सर कुछ बुरा हो जाने का एक अनियंत्रित ख्याल आता है?
8. क्या आप अधिकतर चिड़चिड़े, उदास रहते है या नींद आने में परेशानी होती है?
इस टेस्ट में यदि आप के 3 या 3 से कम “हाँ” हैं तो आप निश्चिन्त रहें आप पूरी तरह सुरक्षित और नार्मल हैं। कित्नु आप को यह स्कोर और भी कम करने की ज़रूरत है। यह स्कोर दर्शाता है कि आप जनरलाइज़्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर (Generalized Anxiety Disorder) की श्रेणी में नहीं हैं। किन्तु यह हमेशा ध्यान रहे कि किसी भी बात की अधिकता से हमेशा नुकसान होता है। कोशिश करें कि इसे और अधिक न बढ़ने दें।
यदि आप का स्कोर 3 से 4 के बीच में हैं तो आप बॉर्डर लाइन पर हैं। यहाँ आप को अपने ऊपर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है अन्यथा आप इस डिसऑर्डर(बीमारी) के शिकार भी हो सकते हैं। यदि आप का स्कोर 5 से 8 के बीच में हैं तो आप को जितनी जल्दी हो सके किसी अच्छे मनोचिकित्सक से परामर्श या सलाह लेने की आवश्यकता है। इस स्कोर में यह तो साबित नहीं होता की आप को यह बीमारी है ही कित्नु संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ जाती हैं।
एंग्जायटी के लक्षण(Symptoms of Anxiety) :
शरीर में कुछ भी असामान्य होने पर उसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए अन्यथा छोटी सी बात कब बड़ी बीमारी में बदल जाए यह पता भी नहीं चलता और जीवन बहुत ही कष्ट में व्यतीत होता है।
इस बीमारी के मुख्यतः निम्नलिखित लक्षण होते हैं:-
1.घबराहट
2. धड़कन की गति का तेज़ हो जाना
3.अजीब सा भय (डर)
4.पसीना आना
5.शरीर में झनझनाहट या शरीर में अजीब सा कम्पन होना
6. हृदयघात(Heart Attack) या मृत्यु होने का डर
7. पेट ख़राब रहना
8. तर्कहीन विचारों का बार बार आना
चिंता का कारण(Reason of Anxiety)
चिंता या एंग्जायटी होने के कई कारण हो सकते हैं –
1. अनुवांशिक- ये ऐसी बातें या आदतें हैं जो बच्चों में उनके माता पिता से ही आते हैं, ऐसी आदतों या व्यवहार को अनुवांशिक कहा जाता है।
2. परवरिश- इसका सीधा सा अर्थ है पालन पोषण। अर्थात बच्चा जिस परिवेश में बड़ा होता है या अपने आस पास रहने वाले लोगो के जिस आचरण या व्यव्हार को देखता है या अक्सर घटित होने वाली कुछ बातों को देखता है तो उनमे से कुछ बातें या कुछ आचरण उस बच्चे में भी आ जाते हैं।
3. न्यूरो रासायनिक परिवर्तन- हमारे दिमाग में कुछ हार्मोन्स स्त्राव होता है जो हमारे अंदर आने वाली अलग अलग भावनाओ के लिए जिम्मेदार होते हैं।, अतः जब मस्तिष्क में इन हार्मोन्स का स्त्राव कम हो जाता है तब मानव शरीर में असामान्य बदलाव होते हैं और इन्हे ही न्यूरो केमिकल चेंजेस कहते हैं।
इस बीमारी का सीधा सम्बन्ध दिमाग से है और एंग्जायटी डिसऑर्डर/ पैनिक अटैक या चिंता विकार के लिए मस्तिष्क में होने वाले बदलाव ही जिम्मेदार है और ये बदलाव हैं हमारे मस्तिष्क में निकलने वाले कुछ हार्मोन्स की कमी, जिसे सेरोटोनिन और डोपामाइन के नाम से जाना जाता हैं। ये हार्मोन्स, हमारे मन और मस्तिष्क को शांत रखना, हमें ख़ुशी, उत्साह और भी कई अन्य भावनाओं का एहसास कराना इत्यादि कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं।
वैज्ञानिक तौर पर बात करें तो मानव मस्तिष्क में होने वाले न्यूरो केमिकल चेंजेस सामान्यतः विभिन्न बदलाव के कारण होता है।
1. अव्यवस्थित दिनचर्या।
2. व्यायाम या शारीरिक परिश्रम का आभाव।
3. सामाजिक मेल-जोल का अभाव।
4. अकेलापन।
5. भावुकता।
हालांकि उपरोक्त बातों से यह साबित नहीं होता इनकी वजह से हर कोई इस बीमारी से ग्रसित हो सकता है लेकिन एक बीमार व्यक्ति में अधिकतर इन बातों का होना अपया जाता है।
एंग्जायटी या पैनिक अटैक के लक्षण अचानक पैदा नहीं होते बल्कि, इसमें काफी लम्बा समय लगता है। कुछ ऐसे अन्य कारण हो सकते हैं जिन्हे हम अक्सर नज़र अंदाज़ करते हैं -
• अत्यधिक और अकारण सोंच।
• किसी भी विषय के बारे में विचारों की एक श्रंखला का बनाना।
• अकारण ही किसी अनपेक्षित(अन-एक्सपेक्टेड) घटनाओ में ध्यान केंद्रित रहता है जिससे हम आहत हुए है और यह जानते हुए भी कि इन विषयों के बारे में सोंचने से कोई लाभ नहीं फिर भी उस विषय के बारे में सोंचना। जैसे :- मैं ऐसा कर लेता, मैं वैसा कर लेता या अब मैं ऐसा करूँगा या वैसा करूँगा या बोलूंगा इत्यादि। धीरे धीरे हमें इसकी आदत हो जाती है जिसकी वजह से मस्तिष्क में अतिरिक्त दबाओ पड़ता है।
उपचार :
निम्नलिखित कुछ जरुरी बातें हैं जिनका आप को विशेष रूप से पालन करना चाहिए, जिसका एंग्जायटी अटैक या पैनिक अटैक को ख़तम करने में प्रभावी योगदान है :-
1. शारीरिक जांच- शरीर के सभी जरुरी टेस्ट जैसे - ब्लड टेस्ट, ECG, MRI, और EEG करवा लें। ये टेस्ट करवाना जरुरी नहीं किन्तु शंका निवारण के लिए एक बार टेस्ट करवा लें। आप के शरीर की वास्तविक और शरीर के सारे फंक्शन की जानकारी आप के सामने होगी। जिसके बाद किसी भी प्रकार की शंका का कोई स्थान नहीं होगा आप निश्चिन्त होकर कार्य कर पाएंगे।
2. पेट की समस्या- पेट की समस्या एवं गैस की वजह से कभी कभी सीने में हल्का दर्द महसूस होता है और इस बीमारी की वजह से हार्ट अटैक की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है जिसकी वजह से बेचैनी और घबराहट भी बढ़ जाती है। चूँकि इस दौरान आप का पेट भी ख़राब हो सकता है, जिसकी वजह से गैस की समस्या बढ़ सकती है और गैस ही सीने में दर्द होने की एक मुख्य वजह हो सकती है जिसकी वजह से आप की शंका बढ़ जाती है और नकारात्मक सोंच, बेचैनी और घबराहट की वजह से पैनिक अटैक आने की संभावनाएं भी बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। इसलिए आप को अपने पेट में होने वाली समस्या का खास ख्याल रखना होगा। ऐसा करना इसलिए भी जरुरी हो जाता है क्योंकि पेट की खराबी की वजह से शरीर में लगभग 99% बीमारी उत्पन्न होती है इसलिए पेट की समस्या से समाधान आप को कई अन्य घातक बिमारियों से बचा सकता है।
एकाग्रता-आपका मन एकाग्र होना आवश्यक है। हमारे साथ साझा किये गए अनुभव में पता चला है की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति अपनी एकाग्रता खोता चला जाता है। ऐसे में अपनी एकाग्रता बनाए रखना आवश्यक है। अपना ध्यान वर्तमान में केंद्रित रखें । बेकार की बातों को सोचने की बजाए वर्तमान में आप जो भी कार्य कर रहे हैं उस पर अपना ध्यान केंद्रित करें, यह मुश्किल जरूर होता है पर यकीन मानिये ऐसा कर पाना संभव है। नकारात्मक सोंच से बचने का ये एक उत्तम उपाय है। अपनी एकाग्रता को बढ़ाने के लिए आप मैडिटेशन (ध्यान) का अभ्यास कर सकते हैं।
4. अनुशासित दिनचर्या- हमारी दिनचर्या जैसी होती है वैसा ही प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। इस बीमारी से बचाव के लिए आपको अनुशासित दिनचर्या में विशेष ध्यान देना जरुरी होता है। जिसमें निम्न लिखित बातें शामिल हैं :-
A. सुबह उठने और रात में सोने का समय निश्चित करें। प्रातः 5 से 6 के बीच में उठने का प्रयास करें, यदि ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो आप सुबह जिस समय भी उठते हैं उससे आधे या एक घंटे पहले उठने की कोशिश करें और धीरे धीरे समय कम करते जाएं। और प्रातः 5 से 6 के बीच में उठना शुरू करें।
B. व्यायाम शरीर के लिए बहुत आवश्यक है इसके बहुत अच्छे परिणाम आप को मिलेंगे। आप सुबह जब भी उठें कुछ देर व्यायाम करें ऐसा करना आवश्यक है। यदि आप जल्दी थक जाते हैं तो व्यायाम 10 या 15 मिनट ही करें और धीरे धीरे समय को बढ़ा दें। यदि संभव हो तो व्यायाम सुबह और शाम दोनों समय करें।
C. दोस्तों, यदि आप प्राणायाम नहीं करते, तो इसे आज से ही शुरू कर दें, क्योंकि इसके चमत्कारी परिणाम देख कर आप अचंभित रह जाएंगे। प्राणायाम से जुड़ी बहुत सारी जानकारी आप को ऑनलाइन प्राप्त हो जाएगी। आपको 1. भस्त्रिका(2 से 5 मिनट) 2. कपालभाति(10 से 15 मिनट) 3. अनुलोम-विलोम(10 से 15 मिनट) 4. भ्रामरी (5, 7 या 11 बार) का अभ्यास करना है।. प्राणायाम के लिए आप रोज प्रातः 45 मिनट का समय जरूर दें। आपको पहले दिन से ही इसके परिणाम दिखने शुरू हो जाएंगे।
D. कोशिश करें की आप समय पे ही भोजन करें एवं भोजन करने के नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करें। मीठा, चाय, कॉफ़ी या कोल्ड्रिंक पीने की आदत को पूरी तरह समाप्त करने की कोशिश करें, यदि ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो जितना हो सके इसकी मात्रा को कम करने की कोशिश करें।
5. अपने सुविधा क्षेत्र(कम्फर्ट जोन) से बाहर निकलें- यदि आप अंतर्मुखी(इंट्रोवर्ट) वाली प्रकृति के व्यक्ति हैं तो आप स्वाभाव से शर्मीले हो सकते हैं एवं नए लोगों के बीच आप आसानी से घुल मिल नहीं पाते होंगे। आपको अकेले समय बिताना, अपने कंफर्ट ज़ोन में रहना ज्यादा पसंद होगा और यदि आप इस बीमारी से ग्रसित हैं तो आप की प्रकृति इस बीमारी के अनुकूल नहीं है। आप को सामाजिक मेल मिलाप, दोस्तों से मिलना शुरू कर देना चाहिए। किसी भी तरह या किसी भी बहाने से बाहर निकलें और लोगों से मिलें। अपने सुविधा क्षेत्र(कम्फर्ट जोन) से बाहर निकलने का प्रयास करें। इस बीमारी से आज़ादी के लिए आपका यह प्रयास आवश्यक है।
इन सारे नियमों का पालन करने के बाद आपने जितना सोंचा भी नहीं होगा उससे कहीं ज्यादा अच्छे परिणाम आप को देखने को मिलेंगे। संभवतः आपको न किसी दवा की जरूरत पड़ेगी और न ही किसी मनोचिकित्सक की। यदि आप बहुत लम्बे समय से भी इस बीमारी से ग्रसित हैं और दवाइयों पर निर्भर हैं तो विश्वास मानिये इन नियमों के पालन से आप पूरी तरह और हमेशा के लिए स्वस्थ हो जाएंगे और आप की दवाई भी छूट जाएगी।
उत्साह और उमंग धीरे धीरे फिर से वापस आ जाएगा। आप की एकाग्रता, आप का मनोबल, एवं जीवन के प्रति आप का सकारात्मक नजरिया आप को एक बार फिर प्राप्त हो जाएगा।
आप इन सभी नियमों का अवश्य पालन करें और अपने जीवन में हमेशा के लिए एक आदत का हिस्सा बना लें।
इस बीमारी से जुड़ी कोई भी बात यदि आप हमसे पूछना चाहते हैं या अपना कोई सुझाव देना चाहते हैं तो हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं। आप की मदद कर के और आप के ठीक होने की खबर सुन के हमें और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा।
हम ईश्वर से आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। स्वस्थ रहिये, मस्त रहिये।